बर्ष 1921 से जल रही अखंड धूनी
सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा: जिले के अमरवाड़ा ब्लाक में स्थित आंचलकुंड दादाजी दरबार आदिवासियों की श्रद्धा और अटूट विश्वास का केंद्र है।यहां 100 सालों से कुंड में लगातार धूनी जल रही है जो कभी नहीं बुझी। ]ऐसी मान्यता है की यहां खंडवा के दादाजी धूनीवाले ने ही धूनी जलाई थी,जो आज तक लगातार जल रही है।आदिवासी समाज की आस्था का प्रमुख केंद्र आंचल कुंड धाम हर्रई विकासखंड के ग्राम बटकाखापा के पास स्थित है। इस मंदिर में दादा जी का दरबार सजा हुआ है जहां पर एक कुंड है जिसमे तीन पीढ़ी से अखंड धूनी जल रही है जिसकी भभूति से लोगों की सभी समस्याओं का समाधान होता है साथ ही पाँच मंजिला भव्य मंदिर श्रधालुओं के आकर्षण का केंद्र है।यहाँ वैसे तो प्रतिदिन बहुत तादात में श्रद्धालु पहुंचते है किन्तु प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को यहाँ दादा जी का दरवार लगता है जिसमे लोग अपनी परेशानियों के निदान के लिए बड़ी मात्रा में पहुंचते है और अखंड धूनी की भभूति को प्रसाद स्वरुप प्राप्त कर समस्याओं से समाधान प्राप्त कर रहे है.कंगालदास महाराज जी के बाद रतन दास महाराज जी और बर्तमान में श्री सुखराम दास जी महाराज धुनि वाले दादा जी की पदवी पर है जो तीसरी पीढ़ी में दादा धुनि वाले की मंगल परंपरा का निर्वाहन कर रहे है.
आंचलकुंड धाम की स्थापना कंगाल दास बाबा ने की थी जो आदिवासी परिवार सिंगरामी इनवाती के परिवार में जन्मे थे। परिवार मजदूरी करने नरसिंहपुर जाया करता था, जहां साईं खेड़ा में दादाजी धूनीवाले का दरबार था यहां जाकर कंगाल दास बाबा रहने लगे और पूजा-पाठ करने लगे। इसके बाद उन्होंने दादाजी धूनीवाले को गुरु बनाया और उनकी पूजा-अर्चना आंचल कुंड में करने लगे तभी कुछ लोगों ने इसका विरोध किया तो वह दोबारा साईंखेड़ा दरबार में जाकर दादाजी धूनीवाले के समक्ष जाकर रोने लगे और दादाजी को अपने साथ आंचलकुंड बुलाने की जिद करने लगे, जिसके बाद दादाजी ने कहा कि तुम चलो मैं भी वहीं आता हूं, जब वह करीब डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी तय कर 15 दिन में आंचलकुंड पहुंचे तो जाकर देखा कि दादाजी और हरिहर बाबा मड़िया में बैठे हुए थे। वहीं दादाजी धूनीवाले ने धूनी जलाते हुए कंगाली बाबा को वरदान दिया कि हम यहीं पर निवास करेंगे और इसी धूनी से सभी के संकट दूर होंगे, तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है तब से लेकर आज तक आंचल कुंड धाम में अखंड धूनी जल रही है।
आंचल कुंड धाम में प्रत्येक बर्ष जनवरी माह में मेला लगता है जहां काफी संख्या में श्रद्धालु पूजा करने के लिए आते हैं। 14 जनवरी मकर सक्रांति पर्व,30 जनवरी शिष्य सम्मेलन,महाशिवरात्रि पर्व एवम इसके बाद नौतपा साधना कार्यक्रम होता है जिसमे धूनी वाले दादा जी चारों तरफ अंगार के बीच बैठकर तपस्या करते है जो 25 मई से 2 जून तक चलता है । गुरु पूर्णिमा एवं रतनदास जी महाराज की बरसी श्री गंगा पंचमी आदि विशेष पर्वो में दरबार में धार्मिक आयोजन और भंडारे का आयोजन होता है।