मनुष्य भगवन श्री गणेश उपासना कर रिद्धि सिद्धि सद बुद्धि प्राप्त करता है जिनकी कृपा से मोक्ष की इच्छा रखने वालों की अज्ञानमय बुद्धि का नाश होता है, जिनसे भक्तों को संतोष पहुंचाने वाली संपदाएं प्राप्त होती हैं, जिनसे विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं और कार्य में सफलता मिलती है, ऐसे गणेश जी का हम सदैव नमन करते हैं, उनका भजन करते हैं।
जिस प्रकार सूर्य अंधकार को दूर भगाता है वैसे ही जिसके चरण-कमलों का स्मरण विघ्नों के समूह का नाश करता है, हाथी के मुख वाले ऐसे देव (गणेश) की जय हो । वासरमणि का अर्थ वस्तुतः क्या है यह मुझे नहीं मालूम, किंतु मैंने इसका अर्थ दिन की मणि अथवा सूर्य माना है । सिंधुर = हाथी, वदन = मुख ।
हाथी के मुख वाले, भूत-गणों के द्वारा सेवित, कैथ एवं जामुन का चाव से भक्षण करने वाले, शोक (दुःख या कष्ट) के नाशकर्ता, उमा-पुत्र का मैं नमन करता हूं, विघ्नों के नियंता श्री गणेश के चरण-कमलों के प्रति मेरा प्रणमन । भूतगण = भगवान् शिव के अनुचर । गणेश को मोदकप्रिय (लड्डुओं के शौकीन) तो कहा ही जाता है, इस श्लोक से प्रतीत होता है कि उन्हें कैथ तथा जामुन के फल भी प्रिय हैं ।
जिनकी कृपा से मोक्ष की इच्छा रखने वालों की अज्ञानमय बुद्धि का नाश होता है, जिनसे भक्तों को संतोष पहुंचाने वाली संपदाएं प्राप्त होती हैं, जिनसे विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं और कार्य में सफलता मिलती है, ऐसे गणेश जी का हम सदैव नमन करते हैं, उनका भजन करते हैं।
॥ गणेश जी की आरती ॥
शिवनंदन दीनदयाल हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे, गणराज तुम्हारी जय होवे, महाराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे ||
इक छत्र तुम्हारे सिर सोहे, एकदंत तुम्हारा मन मोहे, शुभ लाभ सभी के दाता हो, गणराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे ||
ब्रम्हा बन कर्ता हो तुम ही, विष्णु बन भर्ता हो तुम ही, शिव बन करके संहार हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे ||
हर डाल में तुम हर पात में तुम, हर फूल में तुम हर मूल में तुम, संसार में बस एक सार हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे ||
शिवनंदन दीनदयाल हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे, शिव नंदन दीन दयाल हो तुम, गणराज तुम्हारी जय होवे ||
॥ गणेश जी की आरती ॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥ जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती पिता महादेवा
अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया । ‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥
॥ गणेश जी की आरती ॥
गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विध्न टरें |
तीन लोक तैतिस देवता, द्वार खड़े सब अर्ज करे ||
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजे, अरु आनन्द सों चवर करें |
धूप दीप और लिए आरती, भक्त खड़े जयकार करें ||
गुड़ के मोदक भोग लगत है, मुषक वाहन चढ़ा करें |
सौम्यरुप सेवा गणपति की, विध्न भागजा दूर परें ||
भादों मास और शुक्ल चतुर्थी, दिन दोपारा पूर परें |
लियो जन्म गणपति प्रभुजी ने, दुर्गा मन आनन्द भरें ||
अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का, देव वधू जहँ गान करें |
श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुन्या सब विघ्न टरें ||
आन विधाता बैठे आसन, इन्द्र अप्सरा नृत्य करें |
देख वेद ब्रह्माजी जाको, विघ्न विनाशक नाम धरें ||
एकदन्त गजवदन विनायक, त्रिनयन रूप अनूप धरें |
पगथंभा सा उदर पुष्ट है, देख चन्द्रमा हास्य करें ||
दे श्राप श्री चंद्रदेव को, कलाहीन तत्काल करें |
चौदह लोक मे फिरे गणपति, तीन लोक में राज्य करें ||
उठ प्रभात जो आरती गावे, ताके सिर यश छत्र फिरें |
गणपति जी की पूजा पहले करनी, काम सभी निर्बिघ्न करें |