सतपुड़ा एक्सप्रेस।गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह वह दिन है जब हम उन गुरुओं के प्रति अपनी कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करते हैं, जिन्होंने हमारे जीवन को ज्ञान के प्रकाश से रोशन किया है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का एक उत्सव है ।
– एक ऐसा बंधन जो ज्ञान, प्रेम और अटूट विश्वास पर आधारित है।शिष्य के लिए गुरु से बढ़कर कुछ नहीं
यह बात बिल्कुल सत्य है कि एक सच्चे शिष्य के लिए उसके गुरु से बढ़कर कुछ नहीं होता। गुरु केवल ज्ञान का दाता नहीं होता, बल्कि वह एक मार्गदर्शक, संरक्षक और प्रेरणा का स्रोत भी होता है। गुरु शिष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। वे सिर्फ किताबी बातें नहीं सिखाते, बल्कि जीवन जीने की कला, मूल्यों और नैतिकता का पाठ भी पढ़ाते हैं। एक सच्चा शिष्य अपने गुरु में ईश्वर का स्वरूप देखता है, क्योंकि गुरु ही उसे आत्मज्ञान और जीवन के उच्चतम लक्ष्यों तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं।शिष्य के जीवन में गुरु का महत्वशिष्य के जीवन में गुरु का महत्व अतुलनीय है। वे एक कुम्हार की तरह होते हैं जो मिट्टी (शिष्य) को आकार देकर एक सुंदर घड़ा (सक्षम व्यक्ति) बनाते हैं।
* ज्ञान का स्रोत: गुरु ज्ञान का असीमित सागर होते हैं। वे न केवल शैक्षणिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि जीवन के व्यावहारिक पहलुओं, आध्यात्मिक समझ और सही-गलत का विवेक भी सिखाते हैं।
* मार्गदर्शक: जीवन के हर मोड़ पर जब शिष्य भ्रमित होता है, तो गुरु ही उसे सही राह दिखाते हैं। वे शिष्य की क्षमताओं को पहचानते हैं और उसे अपनी पूरी क्षमता तक पहुँचने में मदद करते हैं।
* प्रेरणा और प्रोत्साहन: जब शिष्य निराश होता है या हार मानने लगता है, तो गुरु उसे प्रोत्साहित करते हैं और उसमें आत्मविश्वास भरते हैं। उनकी उपस्थिति मात्र ही शिष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
* संस्कारों का निर्माण: गुरु केवल शिक्षा नहीं देते, बल्कि शिष्य में अच्छे संस्कार, विनम्रता, अनुशासन और नैतिक मूल्यों का भी संचार करते हैं। ये मूल्य एक व्यक्ति के चरित्र को आकार देते हैं।
* अज्ञानता का नाश: गुरु शिष्य के मन में व्याप्त संशयों और अज्ञानता को दूर करते हैं, जिससे उसे स्पष्टता और सत्य का बोध होता है।गुरु: इस संसार की सबसे अद्भुत रचनावास्तव में, गुरु इस संसार की सबसे अद्भुत रचना हैं। वे निस्वार्थ भाव से अपना ज्ञान और अनुभव बांटते हैं, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ की इच्छा के। गुरु का कार्य केवल शिक्षा देना नहीं है, बल्कि शिष्य के भीतर छिपी क्षमता को जगाना, उसे जीवन के संघर्षों का सामना करने के लिए तैयार करना और उसे एक बेहतर इंसान बनाना है।
गुरु ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान पूजनीय हैं:
* ब्रह्मा के समान: वे हमें नया ज्ञान देकर हमारी रचना करते हैं, हमें एक नया दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
* विष्णु के समान: वे हमारी रक्षा करते हैं, हमें सही मार्ग पर बनाए रखते हैं और हमें पोषण देते हैं।
* महेश के समान: वे हमारे भीतर की अज्ञानता और नकारात्मकता का नाश करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें इस पवित्र रिश्ते की याद दिलाता है और हमें अपने जीवन में गुरुओं के योगदान के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर देता है। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि हमें स्वयं भी ज्ञान प्राप्त कर दूसरों के लिए मार्गदर्शक बनने का प्रयास करना चाहिए।