जान जोखिम में डाल रहे झीलढाना के आदिवासी ग्रामीण
सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा —मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के मोहखेड़ विकासखंड की ग्राम पंचायत ग्वारा के अंतर्गत आने वाला आदिवासी बहुल झीलढाना गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। आजादी के दशकों बाद भी यहां के ग्रामीण विकास की मुख्यधारा से कटे हुए हैं।गांव में ना पक्की सड़क है, ना स्वास्थ्य सुविधा, और ना ही शिक्षा के लिए कोई मजबूत आधारभूत ढांचा।
सबसे बड़ी समस्या है – गांव से गुजरने वाली उफनती नदी पर अब तक पुल का निर्माण नहीं होना, जिसके चलते बच्चों को हर रोज जान जोखिम में डालकर स्कूल जाना पड़ता है।
बारिश में बन जाता है टापू, संपर्क मार्ग बाधित मानसून आते ही झीलढाना गांव टापू में तब्दील हो जाता है। बिछुआ-रामाकोना मार्ग से जोड़ने वाला रास्ता पूरी तरह कच्चा और उबड़-खाबड़ है, जो बारिश में कीचड़ और दलदल में बदल जाता है। ऐसे हालात में गांव के लोग देश के बाकी हिस्सों से कट जाते हैं।
जान जोखिम में डाल स्कूल जाते हैं बच्चे गांव के प्राइमरी और मिडिल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे उफनती नदी को पार करके स्कूल पहुंचते हैं। यही स्थिति आंगनबाड़ी में जाने वाले बच्चों की भी है। नदी पर पुल न होने से स्कूली बच्चों के साथ ही गर्भवती महिलाओं और बीमार ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। हर साल कई बार जानलेवा हादसे होने का खतरा बना रहता है।प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से लगाई गुहारग्रामीणों ने कई बार पुल निर्माण की मांग को लेकर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को अवगत कराया है, लेकिन अब तक केवल आश्वासन ही मिले हैं। कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।डिजिटल इंडिया की हकीकत पर सवालजहां एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया और स्मार्ट गांव की बात कर रही है, वहीं झीलढाना जैसे गांव की स्थिति देश के विकास की असल तस्वीर बयां करती है।
यहां आज भी सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं एक सपना बनी हुई हैं।— जैसे गांवों की समस्याएं केवल स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विकास नीति पर भी सवाल खड़े करती हैं। यदि समय रहते पुल का निर्माण नहीं कराया गया, तो यहां के बच्चों का भविष्य और ग्रामीणों की जान जोखिम में बनी रहेगी।