राजनीतिक दखल के कारण आदिवासी बच्चों की अनदेखी ?
सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)।छिंदवाड़ा जिले के बिछुआ स्थित एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय सिंगारद्वीप से चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। यहां के छात्र-छात्राओं को न केवल बेहद खराब गुणवत्ता का भोजन परोसा जा रहा है, बल्कि खाने में इल्ली, कंकर और एक्सपायरी खाद्य सामग्री तक पाए गए हैं। छात्रों के अनुसार दाल पतली और सब्ज़ी में सिर्फ पानी दिया जा रहा है।
भोजन में निकली इल्ली और कंकड़, छात्र-छात्राओं में आक्रोश
विद्यालय के अधीक्षक, प्राचार्य और स्टाफ ने भी यह पुष्टि की है कि भोजन की गुणवत्ता लगातार खराब है। शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं, लेकिन अब तक ठेकेदार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। छात्र-छात्राओं ने अधिकारियों से कई बार शिकायत की, लेकिन अब तक उन्हें सिर्फ निराशा ही मिली है।भोजन का ठेका सत्ताधारी दल के नेता से जुड़ी फर्म को!स्थानीय सूत्रों के अनुसार, विद्यालय में भोजन की आपूर्ति “शिव इंटरप्राइजेस” नामक निजी ठेकेदार द्वारा की जा रही है, जो कथित रूप से सत्ताधारी दल से जुड़ा हुआ है।

छात्रावास में कार्यरत स्टाफ का आरोप है कि ठेकेदार की मनमानी चल रही है और अधिकारी उस पर कोई एक्शन लेने की स्थिति में नहीं हैं।छात्र बोले: “जानवरों को भी न परोसा जाए ऐसा खाना, हम तो इंसान हैं”छात्रों का कहना है कि उन्हें जिस स्तर का भोजन दिया जा रहा है, वह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। दूध और मसालों के डुप्लीकेट पैकेट, एक्सपायरी सामग्री, खराब अनाज जैसी चीजें उपयोग में लाई जा रही हैं। छात्रों ने मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार लगाई है।

राजनीतिक दखल के कारण आदिवासी बच्चों की अनदेखी? एकलव्य विद्यालय आदिवासी छात्रों के लिए संचालित एक प्रमुख शिक्षण संस्थान है, लेकिन यहां अब नेतागिरी और ठेकेदारी की साजिशें प्राथमिक शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं पर भारी पड़ रही हैं। जनजातीय कार्य विभाग और जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते छात्र आवासों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।प्राचार्य और अधीक्षक ने भी जताई नाराजगीविद्यालय के अधीक्षक और प्राचार्य ने विभागीय रजिस्टर में भी भोजन की गुणवत्ता को लेकर शिकायत दर्ज की है। लेकिन सहायक आयुक्त और जिला प्रशासन इस मामले में अब तक मौन हैं।

—सरकार चला रही योजनाएं, ज़मीनी हकीकत बदहाल जबकि एक ओर मध्यप्रदेश शासन जनजातीय समुदाय के उत्थान और उनके खानपान को लेकर देशभर में अभियान चला रही है — जैसे कोदो-कुटकी और मिलेट्स को राष्ट्रीय पहचान दी जा रही है — वहीं दूसरी ओर छिंदवाड़ा जैसे जिलों में आदिवासी छात्र-छात्राओं को दो वक़्त की गुणवत्तापूर्ण रोटी भी नसीब नहीं हो रही।
