छिंदवाड़ा के संजू माटे ने मिट्टी को दी नई ज़िंदगी
सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा, जलवायु परिवर्तन और घटती पैदावार के दौर में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के मोहखेड़ विकासखंड के किसान श्री संजू माटे ने जलवायु अनुकूल खेती अपनाकर न सिर्फ अपनी खेती को समृद्ध किया, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य को भी फिर से जीवित कर दिखाया। उनकी यह प्रेरणादायक सफलता टिकाऊ कृषि (Sustainable Farming) की मिसाल बन चुकी है।
—पारंपरिक खेती से थी परेशानियां, मिट्टी हो रही थी बेजान
श्री माटे बताते हैं, “पहले खेती एक बोझ सी लगती थी। हर सीजन में वही पुरानी प्रक्रिया, बढ़ती लागत और घटता मुनाफा। मिट्टी बेजान हो चुकी थी, पानी की भी भारी किल्लत थी।”यह अनुभव देशभर के लाखों किसानों की उस असहायता को दर्शाता है जो पारंपरिक कृषि पद्धतियों में जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार सामने आ रही है।
—बदलाव की शुरुआत: BISA और कृषि विभाग से मिला मार्गदर्शन संजू माटे की खेती में बदलाव तब आया जब उनका संपर्क बोरलॉग इंस्टिट्यूट फॉर साउथ एशिया (BISA), जबलपुर और कृषि विभाग, छिंदवाड़ा से हुआ। उन्होंने जलवायु अनुकूल खेती (Climate-Resilient Farming) के सिद्धांतों से उन्हें अवगत कराया।उन्होंने DBW-187 गेहूं की उन्नत किस्म और शून्य जुताई तकनीक (Zero Tillage Farming) को अपनाया। शुरुआत में संशय था, लेकिन वैज्ञानिकों के सहयोग से उन्होंने इसे आजमाया।
—जीरो टिलेज से पैदावार में 5 क्विंटल प्रति एकड़ की बढ़ोतरी
नई तकनीकों का असर तुरंत दिखा। श्री माटे कहते हैं, “जहाँ पहले छिड़काव विधि से 18 क्विंटल प्रति एकड़ उपज मिलती थी, वहीं जीरो टिलेज से 23 क्विंटल निकली।”इसके साथ ही प्रति एकड़ ₹2000-2500 की लागत भी घटी, समय की भी बचत हुई। मिट्टी की उर्वरता में सुधार और पराली जलाने की जरूरत खत्म होने से पर्यावरणीय लाभ भी मिला।
जीरो टिलेज, जिसे नो-टिल या डायरेक्ट ड्रिलिंग भी कहा जाता है, एक कृषि तकनीक है जिसमें फसल उगाने के लिए मिट्टी को बिना जोते या बिना परेशान किए बीज बोए जाते हैं. इस विधि में, पिछली फसल के अवशेषों को मिट्टी पर छोड़ दिया जाता है और नए बीजों को सीधे अवशेषों में बोया जाता है.

—प्रेरणा बने संजू माटे, अब बनते हैं अन्य किसानों के मार्गदर्शक
आज श्री माटे न सिर्फ खुद समृद्ध हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी जलवायु अनुकूल खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वे कहते हैं, “अब दूसरे किसान मुझसे सलाह लेते हैं। मैं उन्हें दिखाता हूँ कि वैज्ञानिक तरीके अपनाकर हम अपनी किस्मत बदल सकते हैं।
: जलवायु अनुकूल खेती ही है भविष्य की राह संजू माटे की कहानी बताती है कि अगर सही मार्गदर्शन और तकनीक मिले, तो किसान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। यह टिकाऊ खेती, मृदा संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में एक सशक्त कदम है।