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किसान आखिर क्यों है दहेज के साथ खाद लेने को मजबूर ?

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यूरिया डीएपी खाद के साथ क्यों थमाया जा रहा है नैनो यूरिया और नैनो डीएपी

किसानों पर डाला जा रहा है अतिरिक्त आर्थिक बोझ


सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा (रिपोर्ट: आलोक सूर्यवंशी) किसानों का बोनी के समय आते ही यूरिया,डीएपी एनपीके खाद की मांग एकदम से बढ़ जाती है और किसान खाद नहीं मिलने और सरकार द्वारा निर्धारित कीमत से अधिक पर मिलने और खाद के साथ दहेज के रूप में अतिरिक्त सामग्री खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है
सतपुड़ा एक्सप्रेस की टीम के द्वारा छिंदवाड़ा जिला की विभिन्न संस्थाओं में एवं खाद बीज विक्रेताओं की दुकानों के द्वारा की जा रही अनियमिताओं को समझने का प्रयास किया गया जिसमें पाया गया कि किसानों जब दुकानदार,मार्केटिंग सोसाइटी और सेवा सहकारी समीति के पास खाद क्रय करने के लिए जाता है तो उन्हें खाद के साथ दहेज के रूप में अतिरिक्त अन्य सामग्री जैसे नैनो यूरिया, नैनो डीएपी ,सल्फर,ट्रेक्सौर, 1919 आदि सामग्रियां लेने के लिए बाध्य किया जाता है यदि किसान इन सामग्रियों को नहीं लेता है तो उन्हें खाद नहीं दी जाती है जिससे किसानों अतिरिक्त आर्थिक बोझ आता है लागत बड़ रही है

खाद के होलसेलर चला रहे है मोनोपल्ली

खाद्य बीज का व्यापार करने वाले रिटेल व्यापारियों से जुड़े सूत्रों से मिली जानकारी से छिंदवाड़ा जिला में खाद के जो बड़े व्यापारी हैं उनके द्वारा रिटेलर दुकानदार को यूरिया लगभग 340 रुपए के मूल्य पर होलसेल की जाती है एवं एक गाड़ी के साथ लगभग 80000 रुपए का दहेज दिया जाता है जिसको लेने पर ही उन्हें माल दिया जा रहा है अब दुकानदार की यह मजबूरी बनती है कि वह किस मूल्य पर खाद उर्वरक को बेचें ओर आज तक कार्यवाही सिर्फ छोटे दूकानदारों पर हो रही है ओर जो बड़े होलसेलर उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है जिससे संबन्धित कृषि विभाग की पारदर्शिता पर भी सवाल उठते है इस कारण अधिकतम खाद विक्रय करने वाली व्यापारी खाद बुलाने से परहेज कर रहे हैं जिससे मार्केट में खाद की मारामारी उत्पन्न हो जाती है डीएपी खाद को लेकर एक व्यापारी के द्वारा बताया गया की बोनी के समय डीएपी खाद का शॉर्टेज बात कर मार्केट में होलसेलर के द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया जिसमें खाद नहीं आने का कारण वैश्विकस्तर पर युद्ध होना बताया गया जब उच्चतम मूल्य पर खाद का व्यापार हो गया उसके बाद पुनः डीएपी खाद बाजार में भरपूर मात्रा में उपलब्ध हो गई यह सारी व्यवस्था उच्च स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार को इंगित कर रही है इस व्यवस्था में उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिए एवं खाद के होलसेलर को अपने होलसेल के रेट पर बिना दहेज के खाद विक्रय की व्यवस्था नियमित की जानी चाहिए एवं खाद कंपनियों के द्वारा या अन्यथा खाद के साथ आने वाले दहेज पर यदि उच्च स्तर पर प्रतिबंध लग जाएगा और रिटेलर को निर्धारित दर पर उर्वरक प्राप्त होगा तो वह किसानों को भी निर्धारित दर पर उर्वरक का विक्रय कर पाएंगे इससे किसानों को बहुत आसानी से और निर्धारित दर पर उर्वरक मिलती रहेगी

सेवा सहकारी समिति एवं मार्केटिंग सोसाइटी में विक्रय की जाने वाली उर्वरकों पर जबरदस्ती टिकाई गई नैनो यूरिया और नैनो डीएपी

लगातार सेवा सहकारी समिति एवं मार्केटिंग में विक्रय की जाने वाली उर्वरकों पर जबरदस्ती नैनो यूरिया और नैनो डीएपी टिकाई गई है जबकि किसानों का यह कहना है कि नैनो यूरिया और डीएपी का फील्ड में बेहतर रिजल्ट नहीं है किंतु किसान की मजबूरी है की फसल बोने एवं इसकी वृद्धि के लिए डीएपी और यूरिया खाद उसे डालना ही पड़ता है इस मजबूरी के कारण खाद की अनिवार्यता को देखते हुए उन्हें मजबूरी बस खाद के साथ मिलने वाली नैनो यूरिया,डीएपी या दुकानदार के द्वारा अतिरिक्त मूल्य लेकर और दहेज स्वरूप अन्य सामग्री दिए जाने पर भी मजबूरन उन्हें सामग्री क्रय करना पड़ता है किसानोंकी माने तो प्रत्येक वर्ष खाद की मांग बढ़ने पर उनके साथ यह समस्याएं निरंतर आती है जिसका किसी भी सरकार के द्वारा कोई बेहतर समाधान नहीं निकला गया है
आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है की शासकीय,अर्धशासकीय संस्थाओं के द्वारा उर्वरक की बिक्री के साथ नैनो यूरिया और नैनो डीएपी थमाई गई है जबकि वर्ष 2020-21 और 2021-22 में पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के द्वारा अपने दो वर्ष तक किए गए नैनो यूरिया की रिसर्च में उन्होंने नैनो यूरिया का रिजल्ट बेहतर नहीं पाया था उसके बाद भी किस मजबूरी के कारण किसानों को अतिरिक्त बोझ डालते हुए नैनो यूरिया और नैनो डीएपी थमाई जा रही है जिसकी उच्च स्तरीय जांच होना नितांत आवश्यक है ताकि किसानों को उचित मूल्य पर उर्वरक सही समय पर प्राप्त हो सके

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) ने IFFCO के नैनो यूरिया पर 2 वर्षों तक शोध किया, जिसमें इसे चावल और गेहूं पर पारंपरिक यूरिया के मुकाबले जांचा गया। इस शोध में नैनो यूरिया के उपयोग से जुड़े कई नकारात्मक परिणाम पाए गए:

उपज में गिरावट:

गेहूं की उपज में 21.6% और चावल की उपज में 13% की गिरावट हुई।
लगातार दूसरे वर्ष उपज में और कमी देखी गई, जिससे इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर सवाल खड़े होते हैं।

नाइट्रोजन और प्रोटीन सामग्री में कमी:

चावल में नाइट्रोजन सामग्री 17% और गेहूं में 11.5% कम पाई गई, जो फसलों की गुणवत्ता और पोषण पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
जड़ और बायोमास का कम होना:पौधों की जड़ें और उनका कुल बायोमास कम हो गया, जिससे पौधों की पोषक तत्व अवशोषण क्षमता प्रभावित हुई।

अधिक लागत:

नैनो यूरिया की कीमत पारंपरिक यूरिया की तुलना में 10 गुना अधिक है, जिससे किसानों की उत्पादन लागत बढ़ गई।

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) द्वारा IFFCO के नैनो यूरिया पर किया गया शोध फसल उत्पादन और उर्वरक प्रभावशीलता के लिए महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रदान करता है। यह शोध चावल और गेहूं जैसी प्रमुख फसलों पर किया गया था। नीचे इस शोध के मुख्य बिंदु विस्तार से दिए गए हैं:

  1. फसल उपज पर प्रभाव
    नैनो यूरिया के उपयोग से पारंपरिक यूरिया की तुलना में गेहूं की उपज में 21.6% की गिरावट और चावल की उपज में 13% की कमी देखी गई।
    शोध में पाया गया कि दूसरे वर्ष में यह गिरावट और अधिक स्पष्ट थी, जिससे दीर्घकालिक उपयोग के लिए इसे असुरक्षित माना गया।
  2. पोषण गुणवत्ता में कमी
    नैनो यूरिया के उपयोग से फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा कम पाई गई:
    चावल में 17% कम नाइट्रोजन पाया गया।
    गेहूं में 11.5% कम नाइट्रोजन था।
    नाइट्रोजन की कमी का मतलब है कि फसल की प्रोटीन गुणवत्ता और पोषण मूल्य घट जाता है, जिससे यह खाद्य सुरक्षा के लिए चुनौती बन सकता है।
  3. पौधों की जड़ों और बायोमास पर प्रभाव
    नैनो यूरिया के उपयोग से पौधों की जड़ों का आकार छोटा और उनका कुल बायोमास कम हो गया।
    इससे पौधे पोषक तत्वों को प्रभावी रूप से अवशोषित नहीं कर पाए, जिससे उनकी वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  4. लागत और व्यावसायिक पहलू
    नैनो यूरिया का दावा है कि यह कम मात्रा में उपयोग के लिए उपयुक्त है, लेकिन इसकी कीमत पारंपरिक यूरिया से 10 गुना अधिक है।
    लागत में वृद्धि और फसल उत्पादन में गिरावट के कारण किसानों के लिए यह विकल्प व्यवहारिक नहीं रहा।
  5. दीर्घकालिक प्रभाव और अनुशंसाएं
    PAU ने सुझाव दिया कि नैनो यूरिया को बड़े पैमाने पर उपयोग में लाने से पहले कम से कम 5–7 वर्षों तक विस्तृत परीक्षण किया जाना चाहिए।
    शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि पारंपरिक यूरिया को पूरी तरह से बदलने के लिए नैनो यूरिया वर्तमान में उपयुक्त नहीं है।
    क्या यह तकनीक प्रभावी है?
    नैनो यूरिया, जो फोलियर स्प्रे (पत्तों पर छिड़काव) के रूप में उपयोग किया जाता है, एक उन्नत तकनीक है, लेकिन PAU के निष्कर्ष बताते हैं कि यह वर्तमान में पारंपरिक यूरिया की जगह लेने के लिए उपयुक्त नहीं है। इसके विपरीत, इसने उपज, पोषण और लागत पर नकारात्मक प्रभाव डाला है​
  6. सुझाव:PAU ने इस शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि नैनो यूरिया को चावल और गेहूं के लिए पारंपरिक यूरिया का विकल्प नहीं माना जा सकता। इसके उपयोग से उपज में कमी और दीर्घकालिक पोषण समस्याएं हो सकती हैं। शोधकर्ताओं ने इसे बड़े पैमाने पर अपनाने से पहले 5–7 वर्षों के लिए विस्तृत परीक्षण की सिफारिश की​


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