सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा।भारत में बढ़ते साइबर क्राइम का कड़वा सचआज हम आपको सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि भारत के लाखों साइबर फ्रॉड पीड़ितों की कहानी सुना रहे हैं।डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के इस दौर में जितनी तेज़ी से इंटरनेट सुविधाएं बढ़ी हैं, उतनी ही तेजी से बढ़ा है साइबर अपराध।लेकिन असली चिंता की बात यह है कि सिस्टम खुद इन अपराधों के सामने बेबस नज़र आता है।
—सरकार की कोशिशें – लेकिन धरातल पर नाकामी सरकार ने 1930 हेल्पलाइन, National Cyber Crime Portal, और I4C (Indian Cyber Crime Coordination Centre) जैसी संस्थाएं बनाई हैं।
नियम साफ़ हैं –फ्रॉड होते ही 1930 पर कॉल करें, शिकायत दर्ज कराएं, और 14 अंकों का Acknowledgment Number प्राप्त करें।इसके बाद पोर्टल पर जाकर केस की स्थिति देखी जा सकती है।लेकिन हकीकत में…कई बार शिकायत तो दर्ज होती है, पर नंबर नहीं मिलता।केस महीनों तक “Under Process” दिखता है, जबकि स्थानीय साइबर सेल जांच पूरी कर चुकी होती है।
—बैंकिंग सिस्टम की देरी – अपराधियों के लिए वरदान जब साइबर सेल बैंक को खाते फ्रीज़ करने का आदेश देती है, तो बैंक अक्सर 5-6 दिन की देरी करते हैं।इस बीच अपराधी पैसे निकालकर गायब हो जाते हैं।
नतीजा — लाखों रुपये उड़ जाते हैं और रिकवरी के नाम पर वापस आता है केवल 5-10 प्रतिशत।-
—कानूनी प्रक्रिया का अंधा कोना – “सुपुर्दनामा” का अभाव बैंक जब अकाउंट Lien Mark कर देता है, तो पैसा वापस पाने के लिए पीड़ित को सुपुर्दनामा (Money Release Application) देना पड़ता है।लेकिन यहां से शुरू होती है असली परेशानी —कई वकील इस प्रक्रिया से अनजान रहते हैं।कई जज FIR न होने पर केस खारिज कर देते हैं।पुलिस FIR दर्ज करने से बचती है।और IT Act, 2000 में भी बरामद पैसों की सुपुर्दगी पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
नतीजा — बरामद रकम महीनों तक बैंक में फंसी रहती है और पीड़ित अपने ही पैसों से वंचित रह जाता है।
—देशभर में करोड़ों रुपये बैंक खातों में फंसे देशभर में हजारों ऐसे केस हैं, जिनमें साइबर फ्रॉड के बाद बैंक खातों में Lien Mark तो किया गया, पर राशि आज तक रिलीज़ नहीं हुई।
इसका मुख्य कारण है – सिस्टम में SOP (Standard Operating Procedure) का अभाव और कानूनी जागरूकता की कमी।पीड़ित आर्थिक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं, जबकि अपराधी निडर होकर नए शिकार ढूंढते हैं।
—आगे का रास्ता – सुधार के 4 बड़े कदम
1. 1930 हेल्पलाइन को पारदर्शी बनाना – हर शिकायत पर तुरंत Acknowledgment Number जारी हो।
2. Cyber Crime Nodal Officers की जानकारी सार्वजनिक करना – ताकि पीड़ित सीधे संपर्क कर सकें।
3. अदालत और वकीलों के लिए विशेष प्रशिक्षण – “सुपुर्दनामा – मनी रिकवरी केस” के लिए स्पष्ट SOP बने।
4. मीडिया और नागरिक दबाव – ताकि सरकार तेजी से मनी रिकवरी सिस्टम लागू करे।
—निष्कर्ष: सिस्टम की चुप्पी, अपराधियों की जीत
यह केवल तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि सिस्टम की देरी, अस्पष्टता और जिम्मेदारी से भागने की प्रवृत्ति है।जब तक सुपुर्दनामा प्रक्रिया स्पष्ट नहीं होती और पुलिस को FIR दर्ज करने की बाध्यता नहीं बनती,तब तक डिजिटल इंडिया में करोड़ों लोग अपने पैसे और न्याय दोनों की प्रतीक्षा करते रहेंगे।
—✍️ लेखक: सौरभ दत्ता रे (Sourabh Datta Ray)
📍 विशेष लेख – Satpuda Express Digital Desk