सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा।बोरलॉग इंस्टीट्यूट की पहल से छिंदवाड़ा में हैप्पी सीडर ओर जीरो टिलेज तकनीक से 300 एकड़ मैं जलवायु अनुकूल कृषि की बुआई प्रारंभ हुई जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के कारण किसान अपनी पारंपरिक खेती के तरीकों से परेशान हो रहे हैं। इस चुनौती का समाधान खोजने के लिए बोरलॉग इंस्टिट्यूट फॉर साउथ एशिया और स्थानीय कृषि विभाग ने मिलकर किसानों को नई और प्रभावी तकनीकों के माध्यम से कृषि सुधार का अवसर प्रदान किया है।
छिंदवाड़ा जिले के ग्राम पालाखेड और चारगांव करबल में हैप्पी सीडर और जीरो टिल तकनीक का उपयोग करके गेहूं की बुवाई के एक अभिनव कार्यक्रम की शुरुआत की गई है।किसान की जुबानी इस पहल में शामिल किसान संजू माटे ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले कुछ वर्षों में मौसम की अनियमितताओं के चलते उनकी फसलों को भारी नुकसान हुआ। उन्होंने कहा, “जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझते हुए, मैंने अपनी खेती के तरीकों को बदलने का निर्णय लिया। अब मैं जलवायु-सहनीय खेती को अपनाकर अपनी फसलों की सुरक्षा कर रहा हूं।
” संजू माटे ने बताया कि हैप्पी सीडर और जीरो टिल जैसी तकनीकों के कारण उनकी खेती की लागत में कमी आई है और प्रक्षेत्र प्रबंधन और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो रहा है। इसके साथ ही, ये तकनीकें बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक चुनौतियों से निपटने में भी मददगार साबित हो रही हैं।बोरलॉग इंस्टीट्यूट की भूमिका:इस पहल में बोरलॉग इंस्टीट्यूट ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इसके विशेषज्ञों डॉ. पंकज कुमार एवं श्री दीपेंद्र सिंह ने किसानों को नई तकनीकों के उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी दी और उन्हें इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया। हैप्पी सीडर और जीरो टिल तकनीकों से न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि पानी का संरक्षण भी होता है, जिससे फसलों की पैदावार में सुधार होता है। बोरलॉग इंस्टीट्यूट के प्रयासों से किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए नई उम्मीदें मिली हैं।
नवीन फसल किस्मों की बुवाई:बिसा के द्वारा किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल और उच्च पैदावार देने वाली गेहूं की किस्में Hi 1636, Hi 1634, DBW-303, DBW-187, और GW-451 प्रदान की जा रही हैं। इन किस्मों का विकास सूखा, बाढ़ और अन्य जलवायु संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए किया गया है। इन किस्मों से किसानों को न केवल बेहतर उत्पादन मिल सकता है, बल्कि इससे कृषि क्षेत्र में स्थिरता भी आ सकती है।
किसानों का उत्साह और भविष्य की संभावनाएं:संजू माटे जैसे किसान इन नई तकनीकों और फसल किस्मों से उत्साहित हैं। उन्हें उम्मीद है कि इन बदलावों से उनकी फसलें बेहतर होंगी और वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने में सक्षम होंगे। इस पहल की सफलता से अन्य क्षेत्रों में भी जलवायु-सहनीय कृषि तकनीकों को अपनाने की संभावना बन सकती है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि के साथ लागत में कमी और फसल अवशेष प्रबंधन एंव पर्यावरण संरक्षण में मदद मिल सकती है।