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Chhindwara राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर हुआ मंथन

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भारतीय ज्ञान परंपरा पर पीजी कॉलेज छिंदवाड़ा में आयोजित हुई कार्यशाला

राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा में भारतीय ज्ञान परंपरा पर केंद्रित पाठ्यक्रम निर्माण कार्यशाला का हुआ आयोजन

“भारतीय ज्ञान परंपरा की संचित निधि ने विश्व में धाक जमाई है”: सांसद श्री साहू

“भारतीय संस्कृति के कोष को पुनर्जीवित करने की जरूरत है”: कलेक्टर श्री सिंह

सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा-राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत विश्वविद्यालय स्तरीय एक दिवसीय भारतीय ज्ञान परंपरा कार्यशाला का आयोजन 24 सितंबर को पीजी कॉलेज छिंदवाड़ा में आयोजित किया गया सांसद बंटी विवेक साहू ने विश्वविद्यालय स्तर की कार्यशाला का उद्घाटन किया उज्जैन विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलगुरु सहित उच्च शिक्षा भोपाल से डॉ. धीरेंद्र शुक्ल की मौजूदगी में हुई कार्यशाला में चार जिलों के 250 शिक्षाविद् राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत, भारतीय ज्ञान परंपरा पर मंथन किया।

भारतीय ज्ञान परंपरा को पाठ्यक्रम में समाहित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा द्वारा प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस शासकीय पीजी कॉलेज छिंदवाड़ा में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े विषयों को आधुनिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना था, ताकि विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान की अद्वितीय धरोहर से परिचित कराया जा सके। इस कार्यक्रम में शिक्षा, प्रशासन और संस्कृत के प्रमुख विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
       कार्यशाला के मुख्य अतिथि छिन्दवाड़ा के सांसद विवेक बंटी साहू ने अपने संबोधन में कहा कि “भारतीय ज्ञान परंपरा ने विश्व में हमारी पहचान बनाई है। हमारी संस्कृति और ज्ञान ने सदियों से विश्व भर के विचारकों को प्रभावित किया है। यह ज्ञान संचित निधि हमारे लिए गर्व का विषय है और इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर हमें विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में सहायता मिलेगी।” उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा आज भी प्रासंगिक है और इसका प्रसार करना हमारी जिम्मेदारी है।
भारतीय ज्ञान परंपरा : चरित्र निर्माण का आधार- कार्यशाला की अध्यक्षता राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय की कुलगुरु प्रो.लीला भलावी ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि “भारतीय सांस्कृतिक जीवन मूल्य भावी पीढ़ियों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। हमारी सांस्कृतिक धरोहर न केवल समाज के उत्थान का साधन है, बल्कि इससे हमारे विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण भी हो सकता है।” उन्होंने आगे कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के मुख्य धारा में लाने से विद्यार्थियों को उनके जीवन के उद्देश्य की सही दिशा मिलेगी। विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी (ओएसडी) भोपाल, डॉ.धीरेंद्र शुक्ला ने अपने संबोधन में कहा कि “भारतीय ज्ञान परंपरा हमारे विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के लिए एक सशक्त माध्यम है। यह हमें सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए प्रेरित करती है और इस प्रकार इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना अत्यंत आवश्यक है।”
संवाद और अनुभव के माध्यम से ज्ञान का विकास- महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो.विजय कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि “भारतीय ज्ञान परंपरा जिज्ञासा, खोज, अनुभव और संवाद पर आधारित है। यह शिक्षा का मूल है और इसे आधुनिक शिक्षा पद्धति में शामिल किया जाना चाहिए।” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विद्यार्थियों के स्थिर और सतत विकास के लिए इन आयामों को शिक्षा के केंद्र में लाया जाना चाहिए।
      दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो.रविन्द्र कुमार वशिष्ठ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि “संस्कृत भाषा और भारतीय ज्ञान परंपरा का सम्मिलन हमारी शिक्षा को अधिक प्रभावी बना सकता है। संस्कृत की संस्कारित चेतना और इसकी बौद्धिक संपदा हमारे विद्यार्थियों के मानसिक और शैक्षिक विकास के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।”
भारतीय ज्ञान की धरोहर को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता-  कार्यशाला में कलेक्टर शीलेन्‍द्र सिंह ने भी भाग लिया और अपने संबोधन में कहा कि “भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित अद्वितीय बौद्धिक संपदा को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। यह हमारी जड़ों और सांस्कृतिक धरोहर को फिर से जीवंत कर सकती है और हमें गर्व करने का अवसर प्रदान करती है।”
      कार्यक्रम के तृतीय सत्र में 21 विषयों के विशेषज्ञों ने भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध आयामों पर गहन चर्चा की। विशेषज्ञों ने यह अनुशंसा की कि भारतीय दर्शन, धर्म, अध्यात्म, और गौरवशाली परंपरा के मूल तत्वों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर इसे और अधिक प्रासंगिक और विद्यार्थी केंद्रित बनाया जा सकता है। इस चर्चा के दौरान विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण और समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए भारतीय धरोहर को शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित करने पर बल दिया गया।
सांस्कृतिक प्रस्तुति : भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य की झलक- कार्यक्रम के दौरान स्वरांजलि श्री नारायण संगीत एवं कला महाविद्यालय छिंदवाड़ा की प्राचार्या डॉ.मृदुला शर्मा के निर्देशन में एक विशेष सांस्कृतिक प्रस्तुति भी दी गई। भारतीय शास्त्रीय संगीत के अभिन्न अंग कथक नृत्य शैली में गुरुवंदना, शिव स्तुति और तराना की सुंदर प्रस्तुति दी गई। इस प्रस्तुति में बीपीए कथक स्नातक की छात्राएं – प्रतिभा पाल, नेहा कुमरे, परिणीता लांजीवार, प्रियल खौसी और यशी विश्वकर्मा ने भाग लिया।
समापन और आगे की दिशा- कार्यशाला के संयोजक डॉ.पी.एन.सनेसर ने इस आयोजन के सफल निष्कर्ष की घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा की अद्वितीय धरोहर में वह सामर्थ्य है कि वह आधुनिक शिक्षा के साथ सामंजस्य बनाकर विद्यार्थियों को सशक्त बना सके। इस कार्यक्रम में मिली अनुशंसाओं को भविष्य के पाठ्यक्रम निर्माण में शामिल करने का संकल्प लिया गया, जिससे भारतीय ज्ञान परंपरा को छात्रों के जीवन और शिक्षा का अभिन्न अंग बनाया जा सके। इस कार्यशाला ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की और यह भविष्य में शिक्षा जगत में एक नई दिशा प्रदान करने में सहायक होगी।

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