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अमरवाड़ा व छिंदवाड़ा जिले की सीमा से प्रभु श्रीराम द्वारा वन- गमन के संबंध में सांकेतिक तथ्य प्राप्त हुए

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कवि कालिदास की विश्वविख्यात कृति ‘मेघदूतम्’ में छिंदवाड़ा ज़िले के अमरवाड़ा को ‘आम्रवाटक के नाम से वर्णित किया गया है

सतपुड़ा एक्सप्रेस छिंदवाड़ा:(रिपोर्ट-आलोक सूर्यवंशी)-राम वन गमन पथ वह मार्ग है जिसे भगवान राम , सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास के वर्षों के दौरान अपनाया था। यह अयोध्या से शुरू होता है और श्रीलंका में समाप्त होता है। यह मार्ग हिंदू धर्म में बहुत पूजनीय है और आस्था का प्रतीक है क्योंकि भगवान राम के जीवन की कई प्रमुख घटनाएँ इसी मार्ग पर घटित हुई हैं।

छिंदवाड़ा गजेटियर 1907 में प्रकाशित तथ्य, पुरातत्वत् साक्ष्य एवं स्थानीय किंवदंतियों के आधार पर छिंदवाड़ा जिले में वनवास के दौरान प्रभु श्रीराम के आगमन के संबंध में संकलित जानकारी जिसमे छिंदवाड़ा-अंचल में प्रभु श्री राम के मंदिर तथा माता सीता केचरणचिह्नों से जुड़े हुए गांव बहुतायत से पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के साथ यह किंवदंतियां भी प्रचलित हैं कि अपने वनवासकाल में प्रभु श्रीराम चौरई विकासखंड स्थित गांव रामगढ़ से नीलकंठी, नीलकंठी से रामाकोना एवं रामाकोना होते हुए रामटेक की ओर गए थे। रामटेक (महाराष्ट्र) में उनका रुकना सर्वविदित है। इसके अतिरिक्त छिंदवाड़ा जिले में नीलकंठी गांव में स्थित शिव मंदिर, जो चांद- बिछुआ मार्ग के बीच में है, प्रभु श्रीराम ने यहाँ शिव जी की आराधना की थी, उसका पुरातात्वकि प्रमाण यहां प्राप्त प्राचीन शिलालेख में हुए चित्रण किया गया है। ऐसी भी मान्यता है। यहाँ प्रभु श्री राम की भी मूर्ति है तथा भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों में वराह अवतार, नरसिंह अवतार, राम अवतार, कृष्ण- अवतार आदि की भी भग्न प्रतिमाएं दृष्टिगोचर हैं। वाराह अवतार का बाँया पाँव नागराज के सर पर है किंतु मुख- विहीन भग्न प्रतिमा होने के कारण आज जन द्वारा इसकी वास्तविक पहचान नहीं कर सके किंतु नीचे का हिस्सा पूरा वाराह अवतार का ही है।

अमरवाड़ा से रामटेक तक का मार्ग जो ‘मेघदूतम्’ में कालिदास ने इंगित किया है, वही लोकविश्वास में राम वनगमन-मार्ग के रूप में ध्वनित होता है। संभवतः यह बहुत प्राचीन काल से प्रचलित मार्ग रहा होगा इसीलिए अमरवाड़ा के पास ग्राम रामगढ़ में श्री राम के आने की मान्यता प्रचलित है। और इसीलिए ‘मेघदूत’ के कवि को इस मार्ग का वर्णन करने में सुविधा प्रतीत हुई होगी। छिंदवाड़ा के वरिष्ठ लेखक श्री गोवर्धन यादव जी ने भी अपने उपन्यास ‘वनगमन’ में दंडकारण्य का शोधपूर्ण वर्णन किया है। अतः प्रचलित लोक- विश्वास के साथ-साथ छिंदवाड़ा गजेटियर 1907 (Publisher The Times Press, Bombay, page no. 230-31, District Volume A) में रामाकोना की जानकारियाँ दी गई है

यहाँ से श्रीराम का रामाकोना होते हुए रामटेक की ओर बढ़ना कोई असंभव प्रतीत नहीं होता। छिंदवाड़ा के जंगल भी दंडकारण्य का एक हिस्सा ही बताए जाते हैं। छिंदवाड़ा ज़िले के दिवंगत यशस्वी कवि श्री संपतराव धरणीधर ने अपने एक रेडियो प्रसारण में आकाशवाणी, छिंदवाड़ा से जानकारी दी थी कि संस्कृत साहित्य में कवि कालिदास की विश्वविख्यात कृति ‘मेघदूतम्’ में छिंदवाड़ा ज़िले के अमरवाड़ा को ‘आम्रवाटक के नाम से वर्णित किया गया है जिसमें विरही मेघ को दूत बनाकर रामटेक की ओर प्रस्थान करने के लिए कवि कहता है। यह ‘आम्रवाटक’ छिंदवाड़ा ज़िले की अमरवाड़ा तहसील का संकेत है। ऐसा लगता है कभी अमरवाड़ा में बड़ी-बड़ी अमराइयों रही होंगी इसलिए उसका नाम ‘आमवाटक’ हुआ जो बाद में अपभ्रंश होकर ‘अमरवाड़ा हो गया।

भगवान श्रीराम के वनगमन पथ- निर्माण हेतु शासन द्वारा चलाए जा रहे अभियान के अंतर्गत छिंदवाड़ा जिले की सीमा से प्रभु श्रीराम द्वारा वन- गमन किए जाने के संबंध में जो सांकेतिक तथ्य प्राप्त हुए हैं, उनके अनुसार वे अमरवाड़ा चौरई विकासखंड के रामगढ़ ग्राम से निकलकर चांद और बिछुआ के बीच नीलकंठी में भगवान शिव के पूजनार्थ ठहरे थे,उसके पश्चात प्रभु राम रामाकोना की ओर प्रस्थान कर गए थे, जिसके प्रमाण उपलब्ध हो चुके हैं । अतः रामगढ़ से नीलकंठी के बीच की यात्रा की पुष्टि हेतु अभी तक जो किंवदंतिया एवं सांकेतिक प्रमाण प्राप्त हुए हैं, उन्हें प्रस्तुत करते हुए आज छिंदवाड़ा के प्रमुख साहित्यकारों का एक दल कलेक्टर महोदय से मिला। साहित्यकारों के समूह में श्री विशाल शुक्ला, अवधेश तिवारी, गोवर्धन यादव, रणजीत सिंह परिहार ,रामलाल सराठे, मोहित सूर्यवंशी तथा रजत पांडे आदि सुधीजन उपस्थित थे। उन्होंने कलेक्टर महोदय के समक्ष अपना फ्क्ष प्रस्तुत किया। कलेक्टर महोदय ने उन्हें आश्वासन दिया कि इस संबंध में और प्रमाण एकत्र किए जा रहे हैं । जैसे-जैसे यह संकेत पुष्ट होते जाएंगे, वैसे-वैसे कार्यवाही आगे बढ़ाई जाएगी । इस संदर्भ में जिले के सभी साहित्य सेवी,प्रबुद्ध जनों, चिंतकों,मनीषियों तथा सभी नागरिकों से निवेदन है कि यदि आपके क्षेत्र में इस तरह की कोई किंवदन्ती प्रचलित हो या कोई लिखित या पुरातात्विक प्रमाण हो तो उन्हें कृपया कलेक्टर महोदय या इन साहित्यकारों के पास प्रेषित करने की कृपा करें ताकि रामवनगमनपथ- निर्माण में छिंदवाड़ा जिले की सहभागिता सुनिश्चित हो सके।

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