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जिले के किसानों सेखेतों में नरवाई नहीं जलाने और फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने की अपील

कोई कृषक नरवाई में आग लगाता है तो उसके विरूध्द पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि अधिरोपित कर वसूल किये जाने का प्रावधान

सतपुड़ा एक्स्प्रेस छिन्दवाडा :कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह और उप संचालक कृषि द्वारा जिले के किसानों से अपील की गई है कि खेतों में नरवाई नहीं जलायें और फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढायें। यदि कोई कृषक नरवाई में आग लगाता है तो उसके विरूध्द पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि अधिरोपित कर वसूल किये जाने का प्रावधान है ।
        उप संचालक कृषि जितेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि गेहॅू फसल कटाई के बाद बचे फसल अवशेष का प्रबंधन करते हुए हैप्पी सीडर के माध्यम से ग्रीष्मकालीन मूंग की सीधी बुआई बगैर फसल अवशेष को जलाये बुआई करने पर पर्याप्त मात्रा मे पोषक तत्वों और लाभदायक जीवाणु का भूमि में संरक्षण होता है। साथ ही खेत मे बची नरवाई मल्चिंग का काम करती है जिससे वाष्पोर्त्सजन से होने वाले जल हानि को बचाते हुए ग्रीष्मकालीन मूंग फसल हेतु पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध हो पाता है और खेत मे खरपतवार भी नहीं उगते हैं, अर्थात कम पानी से फसल तैयार हो जाती है। नरवाई न जलाते हुए रोटावेटर के माध्यम से इसे मिट्टी मे मिला देने से फसल अवषेष से भूमि में पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक तत्वों की वृध्दि हो जाती है जिससे मृदा के भौतिक गुणों में सुधार, मृदा भुरभुरी होना, जल धारण क्षमता बढना, लाभदायक सूक्ष्म तत्वों की वृध्दि होती है जो आगामी फसल के लिए लाभप्रद है।
नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान- नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट होती हैं। कीमती भूसे की हानि होती है। फसल के मित्र कीट केंचुआ, सूक्ष्म जीव आदि आग में नष्ट हो जाते हैं। मिट्टी की भौतिक संरचना खराब हो जाती है। भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने वाले सूक्ष्म जीव नष्ट होते हैं। भूमि कडी होती है जिससे भूमि की जल धारण क्षमता कम होकर जुताई में अधिक ऊर्जा की खपत होती है। भूमि में कार्बन की मात्रा कम हो जाती है, जबकि उपजाऊ भूमि में कार्बन की अधिक मात्रा होना आवश्यक है। नरवाई जलाने से जन-धन और जंगलों के नष्ट होने का खतरा होता है।
नरवाई जलाने पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि अधिरोपित कर वसूल की जाती है- 2 एकड़ से कम भूमिधारित व्यक्ति/निकाय द्वारा अपने खेत/खेतों में फसल कटाई उपरांत फसल अवषेषों (नरवाई) को जलाने पर 2500 रूपये प्रति उल्लंघन पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि अधिरोपित कर वसूल की जाती है और 2 एकड़ या उससे अधिक व 5 एकड से कम भूमिधारित व्यक्ति/निकाय द्वारा अपने खेत/खेतों में फसल कटाई उपरांत फसल अवशेषों (नरवाई) को जलाने पर 5000 रूपये प्रति उल्लंघन पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि अधिरोपित कर वसूल की जाती है। इसी प्रकार 5 एकड़ या उससे अधिक के क्षेत्र में भूमिधारित व्यक्ति/निकाय द्वारा अपने खेत/खेतों में फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों (नरवाई) को जलाने पर 15000 रूपये प्रति उल्लंघन पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि अधिरोपित कर वसूल की जाती है।    
हैप्पी सीडर उपयोग से लाभ- हैप्पी सीडर फसलों के अच्छे उत्पादन व भूमि स्वास्थ्य को सुधारने हेतु फसल अवशेष प्रबंधन का अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। प्रत्येक फसल अवशेष में पोषक तत्व होते हैं। यदि इनका प्रबंधन उचित तरीके से किया जाये तो भूमि को पर्याप्‍त मात्रा में पोषण तत्व मिल जाते हैं। हैप्पी सीडर या सुपर सीडर से कृषि भूमि पर कम से कम शस्य क्रिया होती है जिससे भूमि संरचना में कम से कम गिरावट आती है। फसल अवशेष खेत में ही गिर जाने से प्राकृतिक मल्चिंग हो जाती है जिससे नमी अधिक समय तक संरक्षित रहती है। फसल अवशेष अपघटित होकर भूमि में जीवांशयुक्त खाद बन जाते हैं जो कि आर्गेनिक कार्बन को बढ़ाते हैं। सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृध्दि होती है। भूमि में हवा का अच्‍छा संचार होता रहता है और जल धारण क्षमता मे वृध्दि होती है। भूमि का तापमान सही बना रहता है व मल्चिंग की वजह से खरपतवार नियंत्रण होता है। फसल काटने के तुरंत बाद दूसरे फसल की बोनी हो जाती है जिससे समय, श्रम व लागत की बचत होती है जिससे कृषकों  की फसल उत्‍पादन लागत में बचत होती है।
     उप संचालक कृषि श्री सिंह ने बताया कि बी.आई.एस.ए. अनुंसधान केन्द्र जबलपुर द्वारा अपनाई गई नवीन तकनीक नरवाई प्रबंधन हेतु संरक्षित खेती के रूप में गेहॅू फसल कटाई के तुरंत बाद बिना जुताई के हैप्पी सीडर के माध्यम से ग्रीष्मकालीन मूंग फसल की बुआई जिले में लगभग 500 एकड़ क्षेत्रफल में कराई गई है। इस तकनीक को अपनाने से खेत में नरवाई को जलाये बिना बुआई कराई गई है, जिससे ग्रीष्मकालीन मूंग बुआई हेतु खेत की तैयारी में लगने वाले समय की बचत, लागत में कमी, पोषक तत्वों का संरक्षण करते हुए अच्छा फसल उत्पादन होने की संभावना हैं।