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कृषकों को दिसंबर माह में गेहूं फसल की खेती के संबंध में सामयिक सलाह

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 कृषक इस सामयिक सलाह द्वारा गेहूं की खेती कर विपुल उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं

सतपुड़ा एक्सप्रेस छिन्दवाडा : कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केन्द्र इंदौर द्वारा किसानों को माह दिसंबर में गेहूं फसल की खेती के संबंध में सामयिक सलाह दी गई है । कृषक इस सामयिक सलाह द्वारा गेहूं की खेती कर विपुल उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कृषकों को सलाह दी गई है कि गेहूं के लिए सामान्यतया नत्रजन, स्फुर व पोटाश 4:2:1 के अनुपात में देना चाहिये। सीमित सिंचाई में 80:40:20, सिंचित खेती में 140:70:35 व देर से बुवाई में 100:50:25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के अनुपात में उर्वरक देना चाहिये । पूर्ण सिंचित खेती में नत्रजन की आधी मात्रा और स्फुर व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुवाई से पहले मिट्टी में ओरना (3-4 इंच गहरा) चाहिये, शेष बचे हुए नत्रजन की आधी-आधी मात्रा 20 दिन व 40 दिन बाद वाले सिंचाई के साथ देना चाहिये। खेत के उतने ही हिस्से में यूरिया का भुरकाव करें, जितने में उसी दिन सिंचाई दे सकें। जहाँ तक संभव हो यूरिया बराबर से फैलायें। गेहूँ की अगेती खेती में मध्य क्षेत्र की काली मिट्टी व 3 सिंचाई की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद, दूसरी 35-45 दिन और तीसरी सिंचाई 70-80 दिन की अवस्था मे करना पर्याप्त है। पूर्ण सिंचित समय से बुवाई में 20-20 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करना चाहिये। आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर फसल गिर सकती है, दानों में दूधिया धब्बे आ जाते हैं और उपज कम हो जाती है। बालियाँ निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई नहीं करना चाहिये, अन्यथा फूल खिर जाते हैं, दानों का मुँह काला पड़ जाता है व करनाल बंट और कंडुवा व्याधि के प्रकोप का डर रहता है। अधिक सर्दी वाले दिनों में पाले से बचाव के लिए कृषक फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हल्की सिंचाई करें, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़‌काव करें। गेहूँ फसल में मुख्यतः दो तरह के खरपतवार चौड़ी पत्ती व संकरी पत्ती होते है। इसमें चौड़ी पत्ती में बथुआ, सेंजी, दूधी, कासनी जंगली पालक, जंगली मटर, कृष्ण नील, हिरनखुरी और संकरी पत्ती में मोथा, जंगली जई, कांस आदि आते हैं। किसान यदि खरपतवार नाशक का उपयोग नहीं करना चाहते हैं तो डोरा, कुल्पा व हाथ से निंदाई-गुड़ाई 40 दिन से पहले दो बार करके खरपतवार खेत से निकाल सकते हैं। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के लिए 2.4-डी की 0.65 किलोग्राम या मैटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम/ हेक्टेयर की दर से बुवाई के 30-35 दिन बाद, जब खरपतवार 2-4 पत्ती वाले हों, छिडकाव करें। संकरी पत्ती वाले खरपतवार के लिए क्लौडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम हेक्टेयर की दर से 25-35 दिन की फसल में जब खरपतवार 2-4 पत्ती वाले हों, छिडकाव करें। दोंनों तरह चौडी व संकरी पत्तियों के खरपतवार के लिए खरपतवार नाशक मैटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम और क्लौडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम हेक्टेयर की दर से मिलाकर (टैंक मिक्स) 25-35 दिन की फसल में छिड़काव करने से दोनो
तरह के खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है। देरी से बुवाई के लिये एच.आई. 1634 पूसा अहिल्या, सी.जी. 1029 कनिष्क, जे.डब्ल्यू. 1203, एच.डी. 2932 पूसा 111, एम.पी. 3336, राज, 4238 आदि प्रजातियों की बुवाई करें और 31 दिसम्बर तक बोवनी अवश्य कर लें।
कीटों के नियंत्रण के लिये भी किसानों को सामयिक सलाह दी गई है । इसमें सैनिक कीट (आर्मी वर्म) के लारवा (सुन्डी) भूमि की सतह से पौधे के तने को काटते हैं। ये प्रायः दिन में छुपे रहते हैं और रात होने पर निकलते हैं व पौधे की जड़ें काट देते हैं जिससे फसल सूखना प्रारम्भ हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिये 1.5 प्रतिशत क्यूनालफॉस 375 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर सुबह या शाम के समय प्रयोग करें और बाद में सिंचाई कर दें। माहू का प्रकोप गेहूँ फसल में उपरी भाग तना व पत्तों पर होने की दशा में कृषक इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। जड़ माहू (रुट एफिड) गेहूँ के पौधे को जड़ से रस चूसकर सुखा देते हैं। इसके नियंत्रण के लिए कृषक बीज उपचार के लिये गाऊचे रसायन से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 250 मिली ली या याइमैथौक्सैम की 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 300-400 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। गेरूआ रोग में शरबती-चन्दौसी गेहूँ के साथ मालवी गेहूं की खेती करने से गेरुआ रोग की सम्भावना कम हो जाती है। सामान्यतः चन्दौसी किस्में भूरा गेरूआ और मालवी गेहूँ में काला गेरूआ आता है। कृषक गेरुआ रोग से जल्दी ग्रस्त होने वाली पुरानी जातियों की खेती नहीं करें और विश्वसनीय स्थानों से ही शुद्ध बीज का चयन करें। गेरूआ रोग से प्रतिरोधी नई प्राजातियों की खेती करें। अधिक प्रकोप होने पर प्रोपीकोनाजोल 0.1 प्रतिशत, एक एम.एल.प्रति लीटर या टेबुकोनेजाल 0.1 प्रतिशत एक एम.एल. प्रति लीटर दवा का छिड़काव करें। कंडवा रोग (लूज स्मट) बीज जनित फफूंदी जनित रोग है। इस रोग में बालियों में बीज के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है जिसे पुरानी प्रजातियों में भारत के सभी हिस्सों में देखा जा सकता है। इसके उपचार के लिये रोग प्रभावित पौधों को उखाड़कर सावधानीपूर्वक थैलियों में बंद कर मिट्टी में दबाना चाहिए अथवा जला देना चाहिए, क्योंकि यह रोग हवा से फैलता है। कृषक स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें और रोग रोधी किस्मों की ही बुवाई करें। इसके लिए बीज को ट्राइकोडरमा विरडी 4 ग्राम प्रति किलो बीज या कार्बोक्सिन (विटावैक्स 75 डब्ल्यू, पी.) 1.25 ग्राम प्रति किलो बीज या टेकुकोबेजाल रेक्सिल 2 डी. एस. एक ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करके ही उपयोग करें। चूहों के नियन्त्रण के लिए 3-4 ग्राम जिंक फॉस्फाईड को एक किलोग्राम आटा, थोड़ा सा गुड़ व तेल मिलाकर छोटी-छोटी गोली बना लें और उनको चूहों के बिलों के पास रखें। पूर्व में 2-3 दिन तक बिना दवा का आटा, गुड़ व तेल की गोलियाँ बिलों में डालें और उन्हें इनके खाने की आदत हो जाने पर दवा वाली गोली डालें। यह कार्य शाम के समय करें और मरे हुए चुहों को सुबह-सुबह निकालकर गड्ढे में दबा दें या जला दें। खेत में गेहूँ के पौधे के सूखने अथवा पीले पड़ने पर जो कि किसी कीट, बीमारी अथवा पोषक तत्व की कमी से हो सकता है, तुरन्त विशेषज्ञ की सलाह लेकर उसका शीघ्र उपचार करें।

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