Home AGRICULTURE छिंदवाड़ा में हो रहा नवाचार, जानें मोती की खेती की वैज्ञानिक पद्धति…

छिंदवाड़ा में हो रहा नवाचार, जानें मोती की खेती की वैज्ञानिक पद्धति…

छिंदवाड़ा जिले के किसान अब करेंगे मोती की खेती


सतपुड़ा एक्सप्रेस छिन्‍दवाड़ा:
कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में आज कलेक्टर कार्यालय के मिनी सभाकक्ष में जिले में मोती की खेती का नवाचार करने के संबंध में बैठक आयोजित की गई। बैठक में कलेक्टर सिंह ने जिले में मोती की खेती का नवाचार करने के लिये मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत पार्थ जैसवाल, उप संचालक कृषि जितेन्द्र कुमार सिंह, डीन एवं सह संचालक उद्यानिकी महाविद्यालय डॉ.आर.सी.शर्मा, कृषि विज्ञान केन्द्र छिंदवाड़ा के प्रभारी वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ.ध्रुव श्रीवास्तव, परियोजना अधिकारी मनरेगा एवं जिला प्रबंधक, ग्रामीण आजीविका मिशन छिंदवाड़ा श्रीमती रेखा अहिरवार एवं अन्य अधिकारियों को निर्देश दिये। इस दौरान कृषि विज्ञान केन्द्र की वैज्ञानिक श्रीमती चंचल भार्गव ने केन्द्र पर चलाई जा रही मोती की खेती के बारे में प्रेजेन्टेशन व वीडियो डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से जानकारी दी।कलेक्टर श्री सिंह ने पीओ मनरेगा को निर्देश दिये हैं कि प्रत्येक विकासखंड में ऐसे तालाब का चयन करें जिसमें वर्षभर पानी की उपलब्धता रहती है और जो मोती की खेती के लिए उपयुक्त हो। साथ ही जिला प्रबंधक ग्रामीण आजीविका मिशन को निर्देश दिये कि प्रत्येक विकासखंड में 2-2 स्व-सहायता समूहों का चयन कर कृषि विज्ञान केन्द्र चंदनगांव छिंदवाडा से समन्वय कर प्रशिक्षण दिलाकर मोती की खेती का नवाचार जिले में करायें। बैठक में डॉ.गौरव महाजन, डॉ.आर.के.झाडे, नितेश गुप्ता, नीलकंठ पटवारी एवं संबंधित विभागों के अधिकारी उपस्थित थे।

जानें मोती की खेती की वैज्ञानिक पद्धति…ताजे पानी में मोती की खेती

मोती पालन की शुरूवात सन् 1905 में जापान के दो वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया। जिनके नाम टोकीची निशिकावा तटसुए माइक थे। बाद में चीन के मिकिमोटो कोकिचि ने निशिकावा की तकनीकी का इस्तेमाल करके दुनिया में सबसे पहले कलर्ड मोती दिया ।

विश्व में मोती की खेती दो प्रकार के की जाती है:

  1. मीठे पानी से
  2. खारे पानी से

मीठे पानी से मोती पालन तालाबों में किया जाता है, जबकि खारे पानी में मोती पालन की खेती समुद्र के किनारों पर प्लैकिंग तकनीकों के द्वारा की जाती है।

सीप की तीन प्रमुख प्रजातियाँ

लमेल्लिडेस मार्जिनलिस

लमेल्लिडेंस कोरीयनस

पयरेसिया कोर्रगटा

विश्व में मोती तीन प्रकार के होते है:

  1. गोल मोती
  2. अर्ध गोल मोती
  3. डिजाइनर मोती इन तीनों मोतीयों को अलग अलग तकनीकियों द्वारा पैदा किया जाता है:गोनाडल/मेंटल कैविटी /मेंटल टिशू

तालाबों का निर्माण और प्रकार :तालाब दो प्रकार के होते है -1.प्राकृतिक तालाब2.अप्राकृतिक तालाब

मोती पालन के लिए तालाब कम से कम 50 फीट चौड़ाई X 70 फीट लम्बाई X 12 फीट गहराई अनिवार्य है। अगर मोती पालन के लिए तालाब इस मापदंड से छोटा बनाया जाता है तो इससे कई प्रकार की परेशानियां आती है, जैसे की पीएच वेल्यू का परिवर्तित होना और अमोनिया का निरंतर बनना । अगर निरंतर पीएच वेल्यू और अमोनिया को कंट्रोल नहीं किया जाता है तो वह सीप के मरने का मुख्य कारण बनते है।

जब हम प्राकृतिक तालाब बनाते है तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि उसकी चारों दीवारें टेपर के रूप में बनाई जाए। अगर दीवारें टेपर के रूप में ना बना कर 90 डिग्री के ऐंगल पर बना जायेगी तों बारिश के समय वह दीवारे गिर जायेगी जिससे सीपों की मृत्यु भी हो सकती है।

जब तालाबों का निर्माण किया जाता है तो ध्यान रखना चाहिए कि तालाब जमीनी स्तर पर ना बनाया जाय बल्कि जमीनी स्तर से तीन से चार फुट उपर बनाना चाहिए। ऐसा इसलिए करना चाहिए क्योंकि जब बारिश का समय आता है तो आसपास की गंदगी बारिश के पानी के साथ तालाब में जा सकती है जिससे कि तालाब का पानी दूषित भी हो सकता है। प्राकृतिक तालाब बनाते समय हमें तालाब को पूरा 12 फुट नही खुदवाना चाहिए हमें तालाब को 8 फुट तक खुदवाना है उसके बाद जो उससे मिट्टी निकलती है उसी से बाकी 4 फुट बनावाना चाहिए।

तालाबों को कल्चर करने की विधि :

प्राकृतिक तालाब : तालाब का निर्माण होने के बाद हमें उसमें 25 किलो चूने का प्रयोग करना चाहिए जो हमें समान रूप से पूरे तालाब में छिड़क देना चाहिए। अब हमें तालाब को 10 फुट तक पानी भर लेना है। इसके बाद में 10 किलो गोबर लेकर 100 लीटर पानी मिला देना चाहिए और उसे 24 घण्टे के लिए छोड़ देना चाहिए। अगले दिन जो हमने 10 किलो गोबर पानी में भिगोया था उसे एक सूती के कपड़े में छान लेना चाहिए और जो मिश्रण हमारे पास आता है उस मिश्रण को तालाब में डाल देना चाहिए। 6 से 7 दिनों के अंतराल में तालाब का पानी अपने आप ही हरा हो जाएगा और तालाब के अंदर छोटे-छोटे जीवाणु दिखने लगेंगे। जब आपकों तालाब के अंदर छोटे-छोटे जीवाणु दिखने लगे तो समझ जाए की अब आप का तालाब तैयार हो चुका है। तालाब हरा हो जाने के बाद भी हमें सीपों को एकदम से तालाब के अंदर नही डालना चाहिए तालाब कम से कम 1 माह पुराना होना चाहिए ।

अप्राकृतिक तालाब : इस तरह के तालाब हम तब बनाते है जब हमारे तालाब में पानी का रिसाव निरंतर बना रहता है। इसे रोकने के लिए हम पॉड लाइनर / एच डी पी ई / जीयोमेम्ब्रेन का इस्तेमाल करते है। पॉड लाइनर खरीदते दौरान हमें ध्यान रखना चाहिए कि कम से कम हमारा पॉड लाइनर 300 gsm के मापदंड पर खरा उतरे। पॉड लाइनर खरीदने से पहले हमें ध्याना रखना चाहिए कि हम तालाब की लम्बाई, चौड़ाई और गहराई अच्छी तरह से नाप ले। अप्राकृतिक तालाब को अंग्रेजी में आर्टिफिशल पॉड भी कहते है। आर्टिफिशल पॉड में हमें कई बातों का ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है, जैसे की निरंतर मिश्रित आक्सीजन को मेंटेन करना और समय-समय पर सीपों को भोजन देना। इस तरह के तालाब में हमें हफ्ते में एक बार पीएच और अमोनिया के टेस्ट जरूर कर लेना चाहिए ।

सीपों के लिए भोजन :

प्राकृतिक तालाब में सीपों के लिए भोजनः अगर आप के तालाब का अनुपात (50 फुट चौडा और 70 फुट लम्बा और 12 फुट गहरा) तो आपकों अपने तालाब में नियमित रूप से हर हफते डालना चाहिए । भोजन बनाने के लिए आप 4 फुट चौड़ा और 4 फुट लम्बा सीमेंट की टंकी का प्रयोग करें। टंकी में सिर्फ 10 किलो गोबर डाले उसे 7 से 10 दिन तक हरा करें और हरा करने के बाद उसे तालाब में डाल दे।

अप्राकृतिक तालाब में सीपों के लिए भोजनः अप्राकृतिक तालाब के लिए आप दोनों ही तरीके का भोजन का प्रयोग कर सकते हैं जिसमें की गोबर एवं प्लैंक 10 आ जाते हैं। इस तरीके के तालाब में आप हर हफ्ते 5 किलो गोबर 50 लीटर पानी में मिलाए और उसे 7 से 10 दिन तक फर्मेट कर उसका पानी हरा करें और हरा करने के बाद उसे तालाब में डाले। ध्यान रखें की इस पानी को तालाब में डालने से पहले सूती के कपड़े से जरूर छान लें। गोबर के साथ-साथ हर हफ्ते 1 किलो प्लैंक टन 20 लीटर पानी में मिलाकर तालाब में डालें ।

सर्जरी करने के तरीके :

मेटल कैविटीः सीप के खोल और मेंटल लोब के बीच की जगह को मेंटल कैविटी कहा जाता है। इस तरीके की तकनीक में नूक्लीयस को मेंटल लोब और खोल के बीच में डाल दिया जाता हैं। एक सीप के अंदर दो नूक्लीयस डाले जाते हैं।

मंटल टिशूः इस तकनीक के दौरान दो सीप ली जाती है जिसमें एक सीप को डोनर कहा जाता है और दूसरी सीप को रिसीवर कहा जाता है। इस तकनीक में सबसे पहले डोनर सीप में से झिल्ली को रिवन की आकार में काट लिया जाता है। उसके बाद उस झिल्ली में से छोटे-छोटे टिसू काट लिए जाते हैं और इन टिश्यूज को रिसीवर सीप की झिल्ली में डाल दिया जाता है। इस तरीके से सींप की दोनो तरफ की झिल्लीयों में 12 से 16 टिशू डाल दिए जाते है। और 8से 12 महीने बाद यही टिशू मोती बनकर तैयार हो जाते हैं।

गोनाडल: गोनाडल सीप से अंदर एक गुब्बारा नुमा जगह होती है जो की सीप के पैर के उपर होती है । गोनाड के अंदर सीप की अंतडिया भी होती है। यह तकनीक खारे पानी के अंदर अपनाई जाती है । इस तकनीक में दो चीजों का प्रयोग होता है जिसमें एक तो गोल बीज होता है और टिशू होता है । सबसे पहले सीप के गोनाड में छोटा सा कट लगाया जाता है उसके बार गोनाड के अंदर गोल बीज डाला जाता है और फिर टिशु डाला जाता है। इसके अंदर जो टिशु डाला जाता है वह कैटालिस्ट की तरह काम करता है। जिसका तात्पर्य यह हुआ की अगर गोनाड में से बीज निकल भी जाए तो टिशू की वजह से मोती जरूर उत्पन्न होता है। लेकिन अगर गोल बीज की जगह टिशू बाहर निकल जाएतो मोती होने का कोई चांस नहीं होता।

मोती पालन करते समय किन किन बातों का विशेष ध्यान रखे :

  1. मोती पालन की शुरूवात करने से पहले पानी की जांच जरूर कर ले पानी का पीएच वैल्यू 7 से 9 पीपीएम के बीच में होना चाहिए और टीडीएस वैल्यू 900 से नीचे होना चाहिए
  2. अगर तालाब कच्चा बना रहे है तो चूने का प्रयोग जरूर करें ।
  3. तालाब में आक्सीजन की मात्रा हमेशा 3 पीपीएम से उपर रहनी चाहिए ।
  4. तालाब में पानी का स्तर हमेशा 10 फीट पर बना रहना चाहिए ।
  5. तालाब के पानी के पीएच वैल्यू, अमोनिया और आक्सीजन की जांच सप्ताह में एक बार जरूर होना चाहिए ।
  6. तालाब का निर्माण करते समय ध्यान रखें कि तालाब जमीनी स्तर से कम से कम 3 फुट उपर होना चाहिए ।
  7. तालाब की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर फेंसिग जरूर करवाएं। 8. तालाब में अमोनिया की मात्रा कभी भी 0.50 पीपीएम से उपर न बढ़ने दे।

कृषि विज्ञान केन्द्र की वैज्ञानिक चंचल भार्गव द्वारा कृषि विज्ञान केन्द्र छिंदवाड़ा पर चलाई जा रही मोती की खेती